भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ख़ामोश न रहिये कोई बात कीजिये / अबू आरिफ़

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:25, 27 जुलाई 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अबू आरिफ़ }} {{KKCatGhazal}} <poem> ख़ामोश न रहिय...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ख़ामोश न रहिये कोई बात कीजिये
तन्हा जो किया करते थे अब साथ कीजिये

वो शाम तवील और वह लम्हें इन्तिज़ार
अपनी स्याह ज़ुल्फ़ों से ही रात कीजिये

ये बात दिगर है कि खिलवत कदे में है
आये है तो उनसे मुलाकात कीजिये

क्या कुछ छुपा के रखा है उस नशतर-एदिल में
करना है राज़ फ़ाश तो एक साथ कीजिये

आरिफ़ ने अगर छेड़ दी है अगर अन्जुमन की बात
फिर आप ही तनहाइयों की बात कीजिये