भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अक्लमंदी / शर्मिष्ठा पाण्डेय
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:50, 2 अगस्त 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शर्मिष्ठा पाण्डेय }} {{KKCatGhazal}} <poem> ये स...' के साथ नया पन्ना बनाया)
ये सबक अक्लमंदी के सीखे हैं शपा ने
हों जब जवाब सारे,सवालात कम करें
ये कुर्बतें ही सारी मुसीबत का हैं सबब
ऐसा करें की दोनों मुलाकात कम करें
धुंधली सी हुई जा रही कम उम्र में नज़र
आँखों से बेमौसम की ये बरसात कम करें
इक पल में सुलझ जायेंगी सारी ही गुत्थियाँ
मजहब के नाम पर के,मुश्किलात कम करें
कम बोलेंगे और सुनेंगे तो समझेंगे ज्यादा
सरकारी दफ्तरों के से,हालात कम करें
आओ ना भूखे पेटों को रोटी का चैन दें
अब फूल,तितलियों की ज़रा बात कम करें
लाखों,हजारों में कोई एक,'ख़ास' है होता
हर इक के लिए एक से ज़ज्बात कम करें