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अग्नि / शर्मिष्ठा पाण्डेय
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खिलते हैं,फूल पलाश के
जंगले में लगी वह आग, वह दावानल
वैसे ही तुम्हारे प्रेम के पलाश
प्रस्फुटित हो उठे हैं, मेरे काया वन में
और सुलग उठा है,मेरा रोम रोम
क्या, ये भी दावानल है