भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तूँ हमरा से गीत गवावेलऽ / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / सिपाही सिंह ‘श्रीमंत’
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:29, 10 अगस्त 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रवीन्द्रनाथ ठाकुर |अनुवादक=सिपा...' के साथ नया पन्ना बनाया)
कबो सुख के खेल खेला के
कबो नैनन से लोर बहाके
ना जानीं जे कतना छल क के
तूं हमरा से गीत गवां वेलऽ
पकड़े गइला पर तूं पकड़ा लऽ कहाँ?
नजदीक आ-आ के तूभें दूर भग जलऽ
पले-पले प्रन मेभें पीर भर देबेलऽ
एहीं गईं छल से गीत तूं गवावेलऽ
कतना तीव्र तार से आपन बीन तूं सजावेलऽ
छेद क के सएकड़न, जीवन-बभेंशी बजबेलऽ
तहरा स्वर का लीला से हमार जीवन विभोर बा
ओके चुपचाप अपना चरनन में पड़ल रहे द।
जिनगी भर, ना जानीं जे कतना छल से
हमरा से गीत तूं गववलऽ