भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
स्मृतियाँ- 3 / विजया सती
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:12, 31 अगस्त 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजया सती |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पन्ना बनाया)
उनके जीवन के साथ
उनके दुख भी गए
वे किसी को कोई दुख न दे गए
न किसी का कुछ ले गए
बहुत कम जो भी जोड़ा था
तन की मेहनत से
मन की लगन से
उसी से था घर भराभरा -
उनके जाने के बाद भी
कई दिनों तक रहेगा
रसोई के भण्डार में
नमक तेल चीनी के साथ
और भी बहुत कुछ उनसे जुड़ा
कोई ऋण बाकी न रहा उन पर
क्या उऋण हो सकेगी संतान?
करेगी वह सभी के साथ
पिता और माँ जैसा निस्वार्थ
और बिना शर्त प्यार?
इसीलिए तो
इतना अभावग्रस्त कर देने वाला है
पिता के बाद माँ का भी चले जाना!