भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तीर बेघत निकलिये गइल / जवाहर लाल 'बेकस'

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:43, 10 सितम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= }} {{KKCatGhazal}} {{KKCatBhojpuriRachna}} <poem> तीर बेघत निकल...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तीर बेघत निकलिये गइल,
जान अखडे़रे चलिये गइल।
आग ले दोस्ती का भइल,
घर फतिंगन के जरिये गइल।
आदमी, आदमी न रहल,
लोग अतना बदलिये गइल।
पी के गिरला ले का फायदा,
जब कि गिर के सम्हलिये गइल।
एह दुनिया के कोरहाग में,
जे भी आइल ऊ चलिये गइल।
ओह गजल के बसल इयाद में,
उम्र बेकस के ढलिये गइल।