भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कोई सपना नहीं / भूपिन्दर बराड़
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:22, 22 सितम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भूपिन्दर बराड़ |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पन्ना बनाया)
तुम देर रात घर लौटते हो
शराब के नशे में धुत तुम्हारा हाथ
उसके पेट पर घूमता है बदहवास
फिर कोई सपना नहीं
खुली आँखों से वह
बंद करती है
हवा में फटकती खिड़की