भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नई खेती (कविता) / रमाशंकर यादव 'विद्रोही'
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:06, 26 सितम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमाशंकर यादव 'विद्रोही' |अनुवादक= |...' के साथ नया पन्ना बनाया)
मैं किसान हूँ
आसमान में धान बो रहा हूँ
कुछ लोग कह रहे हैं
कि पगले! आसमान में धान नहीं जमा करता
मैं कहता हूँ पगले!
अगर ज़मीन पर भगवान जम सकता है
तो आसमान में धान भी जम सकता है
और अब तो दोनों में से कोई एक होकर रहेगा
या तो ज़मीन से भगवान उखड़ेगा
या आसमान में धान जमेगा।