भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कोई खुश्बू कहीं से आती है / मानोशी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:27, 28 सितम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मानोशी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poe...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कोई खुश्बू कहीं से आती है
मेरे घर की ज़मीं बुलाती है

ज़िंदगी इक पुरानी आदत है
यूँ तो आदत भी छूट जाती है

जाने क्या-क्या सहा किया हमने
पत्थरों पर शिकन कब आती है
 
आप होते हैं पर नहीं होते
रात यूँ ही गुज़रती जाती है

तज्रिबा है हरेक पल ऐ ’दोस्त’
ज़िंदगी रोज़ आज़माती है