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बूचड़खाना / प्रताप सहगल

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यह एक सरकारी बूचड़खाना है
एक सड़क के किनारे,
बाहर से दिखने में छोटा
अन्दर से विशाल।
बाहर कतारें हैं
कतारों में हैं
भैंसे, बकरे
और लोग
हलाल करना हो
या झटका
इसके लिए/व्यवस्था अलग है।

भीड़ छंट-छंटकर
अन्दर फैलने लगती है
'बां-बां'
और 'मैंऽऽ मैं' के स्वरों से
बूचड़खाना जीवित हो उठता है।

गर्म लाल खून के
तेज़ छींटे
धारदार छुरियां
ठिठके खड़े चन्द लोग
बाहर एक कोने में दुबका
डॉक्टर
अन्दर
बीमार जानवर और लोग
छुरियों के नीचे गर्दनें
वही-वही
बार-बार
एक सिलसिला अन्तहीन
बूचड़खाना वहीं नहीं रहता
वह मृत नहीं
जीवित है
जीवित होकर बैठ गया है
अब बूचड़खाना खड़ा है
अब अपने पैरों पर चलने लगा है।

उठने लगी हैं ध्वनियां
कांपने लगा है आकाश
बजने लगी है दुन्दुभि
मैं बूचड़खाना हूं
बूचड़-बूचड़-बूचड़
खाना-खाना-खाना।

बूचड़खाना टुकड़ों में
बंट जाता है
पूरे देश में फैल जाता है
बूचड़खाना
वह इकाई से दहाई
दहाई से सैंकड़ा
सैकड़ा से हज़ार
हज़ार से लाख
और लाख से
करोड़ होने लगता है
सभी जगह फैल गया है
बूचड़खाना
और लोगों के हाथ में
चमक उठती हैं
छोटी-छोटी छुरियां
बन्द दस्तानों में कैद .
यह क्या हुआ
बाहर आकर
फितरत कैसे बदल गयी
बूचड़खाने की
यह क्या हुआ
बड़ी-बड़ी धारदार छुरियां
छोटी क्यों हो गयीं
पैनी और तेज़ छुरियां
छिप क्यों गयीं
दस्तानों में।

बूचड़खाना अभी इस गली में था
अब दूसरी में
अभी वह दिल्ली में था
अब मुरादाबाद में
कुछ वक्त पहले वह अहमदाबाद में था
अब बीदर में
कल वह अलीगढ़ में था
आज हमारी जड़ में।

बूचड़खाना
मस्तमौला हो गया है
वह सभी को देता है सुविधा
कटने और काटने की
चाहे पाकिस्तान हो
या ईरान
बांग्लादेश हो
या अफगानिस्तान
रूस हो या चीन
इण्डोनेशिया या बहरीन
सभी को देता है सुविधा
कटने और काटने की
बूचड़खाने का व्यक्तित्व
इन सबसे बड़ा हो गया है।

कहां से आया है यह
किसने दिया है इसे नाम
शक्ल और व्यक्तित्व
आप चाहें तो इस सवाल को
आराम से टाल सकते हैं
और चार-छह पैग लगाकर
आराम से पांव पसार सकते हैं
पर उससे खत्म नहीं होता
कुछ भी
न आदमी
न लोग
न भूखण्ड
और न अन्दर का अनजाना संसार.
यही है बूचड़खाने की
पैदाइशगाह
यहीं कहीं हमारे अन्दर
तूफान आने से पहले की घुटन
कुछ तोड़ती है
और यहीं कहीं आकार लेता है
एक बदशक्ल राक्षस।

शीशे में अपनी शक्ल-सा खूबसूरत
बूचड़खाना
अन्दर जमकर बैठ जाता है
चलाने लगता है गोलियां
मरोड़ने लगता है गर्दनें
खोदने लगता है कब्रें
और एक आकर्षक गुब्बारा फुलाकर
आदमी के मुंह पर चिपका देता है
अब आदमी आदमी नहीं
गुब्बारा बन गया है
राज्यों की सीमाएं
आणविक अस्त्रों के भण्डार
शराब की बोतलें
जुए के अड्डे
कुछ खूबसूरत लड़कियों के चेहरे
सिनेमा की टिकटें
माचिस की तीलियां
और रंडियों के ब्लाउज़
फिर एक विस्फोट
बेआवाज़।
बूचड़खाना
चुपचाप गुब्बारे से निकलता है
'एकोऽहं बहुस्यामि, एकोऽहं बहुस्यामि'
कहता
पूरे माहौल को
हथिया लेता है।

अब बूचड़खाना
बस में चढ़ गया है
और बस धुंधुआने लगी है
अब वह रेल पर सवार है
और रेल ने बदल ली हैं पटरियां
अब वह एक पुल पर चलने लगा है
और पुल के मजबूत खम्भे
लचकने लगे हैं
अब वह कनॉट प्लेस के सेंट्रल पार्क में बैठा है
दफा एक सौ चौवालीस के बिलकुल सामने
मोर्चा लेने को तैयार
अब वह संसद में पहुँच गया है
भाषण दे रहा है धूंआंधार
थोड़ी देर पहले
वह गेटवे ऑफ इण्डिया के पास
टहलता हुआ
पकड़ा गया।

उस पर देश-द्रोह के आरोप हैं
उस पर आरोप हैं
साम्प्रदायिकता के
वह जातिवाद का कठमुल्ला है
उसने नाबालिग लड़कियों का
शील-भंग किया है
वह कालाबाज़ारिया है
पकड़े जाने के वक्त
उससे बरामद हुई है
स्मगल की हुई मारफीन
वह थाने में बंद है
अब वह अपनी ज़मानत दे रहा है
संसद में आवाज़ उठा रहा है
अपनी गिरफ्तारी के खिलाफ
अब वह प्रेस-कांफ्रेंस कर रहा है
आप पर जो आरोप हैं
उनके बारे में कुछ कहेंगे
'ही...ही...ही...'

आप पर आरोप है कि अपने कैनेडी की हत्या करवाई और रीगन पर गोली भी चलाई। आरोप है कि इन्दिरा गांधी की हत्या भी आपने करवाई और मकालू के कैबिल निकाले। आरोप है कि गांधी की हत्या आपने की और जयप्रकाश नारायण की किडनी भी आपने ही खराब की। आरोप है कि सुकरात को ज़हर पीने के लिए आपने मजबूर किया और क्राइस्ट को सूली पर आपने ही चढ़ाया। आरोप है कि आपने दस हज़ार चूहों को मारा और दस लाख छत्तीस हज़ार नौ सौ उनसठ कबूतरों का सफाया किया !
आरोप है कि...

'हो...ही...ही...'
आरोप-पत्र की लम्बाई बढ़ती जाती है
बूचड़खाने को कोई फर्क नहीं पड़ता
बूचड़खाना अपने वजूद को पहचानता है
और यह भी जानता है
कि आदमी उसे चाहे जाने न जाने
पर उसके आदेश को मानता है
वह सबकी शक्लों पर चिपक गया है
सबकी शक्ले एक-सी हो गयी हैं
बूचड़खाना आश्वस्त है
उसके खिलाफ गठन हुआ है
जांच-समिति का
वह ही जांच-समिति का चेयरमैन है
खुद के खिलाफ
फैसला करना है
उसने खुद ही
वह करेगा
उसने किया
और वह भारी बहुमत से जीत गया।
'बूचड़खाना ! जिन्दाबाद!'
अखबार, रेडियो, टी.वी. सिनेमा
सभी ने उसे महान नेता बनाया
वह बन गया
कवियों ने उसकी प्रशस्ति में गीत लिखे
उसने सुने
सम्पादकों ने सम्पादकीय लिखे
उसने पढ़े
वह दल का नेता चुन लिया गया
उसने
सभी बूचड़खानों से मिलकर काम करने का आग्रह किया
तालियां
उसने सभी बूचड़खानों से मिलकर
साज़िशों के खिलाफ लड़ने को कहा
तालियां
उसने सभी बूचड़खानों से कहा
वे उसके पीछे चलें
उसी की सुनें
उसी की बात करें
उसी से आदेश लें
तालियां
अब वह देश का नेता है
चुना हुआ.
हर देश का नेता
एक बूचड़खाना है
सभी बूचड़खाने मिलते हैं
कभी जिनेवा में
कभी प्राग् तो कभी कोलम्बो में
बूचड़खाना संस्कृति फैल गयी है
पूरे ग्लोब पर
खुश हैं लोग
कि वे भी कहीं-न-कहीं
उसका हिस्सा हैं
'नंगा नाच' नाच रहा है बूचड़खाना
खुश हैं लोग
गोलियां उसी पर चलती हैं
चलाता भी वह खुद है
फिर मरता नहीं बूचड़खाना
लगातार बड़ा हो रहा है
कोई तो आए
जो उसकी सही शिनाख्त करे
करे उससे दो-दो हाथ
इससे पहले कि
बूचड़खाना खा जाए वह सब
जो उसके होने के बावजूद कहीं है।