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फ़र्क / प्रताप सहगल

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मैंने विश्वमोहन तिवारी के घर आज एक दृश्य देखा
दृश्य में दो चट्टानें खड़ी हैं
दोनों आमने-सामने
दोनों चट्टानों की बातचीत सुनने की मैंने कोशिश की
विश्वमोहन तिवारी ने भी कोशिश की होगी
चट्टानें अपने-अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही थीं
एक चट्टाने पहाड़-सी कद्दावर
तो दूसरी थोड़ी कम
यानी छोटी
यानी एक बड़ी चट्टान
दूसरी छोटी चट्टान

बड़ी चट्टान के पास सुरक्षित था अपना अस्तित्व
छोटी पर आदमी ने अपनी राह खोद ली थी
बड़ी चट्टान दर्प मंडित
और छोटी थी समर्पित
दोनों की बातचीत का आशय भी यही था

दोनों चट्टानों के बीच अन्तरिक्ष था
वह ऊंचा भी था
और दूर कहीं पर झुका हुआ भी।