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देह-भाषा / प्रताप सहगल
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आकाश से उतरी है
तरल तैरती देह
फैलती है मादक गन्ध
नथुनों में भरी जाती गन्ध
पेड़ प्रेयसी-से खड़े हुए
ढक लेती है उनको गन्ध
देह जकड़ लेती है उनको
तरल तैरती देह
इधर पेड़ हैं
उधर पेड़ हैं
आंख-मिचौली का माहौल
माहौल से झरती
स्नेह गन्ध
फैली उस पर तरल देह
व्यक्तिगत समूचा
उतरा जैसे
अर्थ दे रहा नये-नये
व्यक्तित्व है उसका
गन्धयुक्त, स्नेहसिक्त
तरल देह।