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स्वप्नजीवी / प्रताप सहगल
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स्वप्नजीवी लोग
खोज रहे हैं/रेखाओं में
स्वप्नों का मूर्त संसार
मिट्टी से कटे
मृत परम्परा से सटे
लोग
भंवर में फंसे
खोज रहे हैं
कोई अनाम राह।
स्वप्नजीवी हैं
कोई स्वप्नद्रष्टा नहीं
इन्हें यही मिला है विरासत से
स्वप्नद्रष्टा नहीं
स्वप्नजीवी बनो
और इन्तज़ार करो
किसी मसीहा का
वही एक दिन आएगा
बन्द सन्दूकची का ढक्कन उठाएगा।
इसमें तिलस्म कैद है
तिलस्म नये-नये सपने देता है
लोग मसीहा के इन्तज़ार में हैं
लोग टटोल रहे हैं अपना भविष्य
स्वप्नजीवी लोग!