भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पहला स्पर्श / शशि सहगल

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:14, 16 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शशि सहगल |अनुवादक= |संग्रह=कविता ल...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुमने जिस दिन
पहली बार मुझे छुआ था
मेरी कुँवारी देह
थरथरा उठी थी।
मैं चाहती थी तुम्हारा सान्निध्य
अधिक
और अधिक
पर, जाने क्यों
तुम एकाएक उठकर चले गए।
आज भी
तुम्हारा वह पहला स्पर्श
याद है मुझे
उसी तरह
और मैं अब भी
आह्लादित हो उठती हूँ
उस संवेदना से।
सच तो यह है कि
कुछ संवेदनाएँ कभी नहीं मरतीं
ताज़ा रहती हैं वे
अपनी पूरी ताज़गी के साथ
तन में बसी
आखिरी साँस तक।