भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घर में रमती कवितावां 32 / रामस्वरूप किसान

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:04, 17 अक्टूबर 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पक्कै घर रो अरथ हुवै
मुक्कमल घर
जकौ घर
सगळै आयामां नै पूरै

ईंट-सिमट अर लोह रौ जक्कड़
कदे ई नीं हो सकै
पक्कौ घर।