Last modified on 17 अक्टूबर 2013, at 14:08

घर में रमती कवितावां 2 / रामस्वरूप किसान

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:08, 17 अक्टूबर 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

छात, तावड़ै सूं लड़ै
म्हारै सारू

छात, तूफान सूं भिड़ै
म्हारै सारू

छात, बिरखा सूं जूझै
म्हारै सारू

पण फेर ई
छात रो पाणी ऊतरै
कीं करणियैं रौ ई ऊतरै
पाणी तो।