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घर में रमती कवितावां 2 / रामस्वरूप किसान
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छात, तावड़ै सूं लड़ै
म्हारै सारू
छात, तूफान सूं भिड़ै
म्हारै सारू
छात, बिरखा सूं जूझै
म्हारै सारू
पण फेर ई
छात रो पाणी ऊतरै
कीं करणियैं रौ ई ऊतरै
पाणी तो।