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घर में रमती कवितावां 21 / रामस्वरूप किसान
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एक दिन
आंगणौ
गळगळौ होय‘र
छात नै बोल्यौ-
तळै आज्या
छात बोली
ऊपर आज्या
जुग बितग्या
ना आंगणौं
ऊपर गयौ
ना छात
तळै आई
इण नै ई तो कैवै
जुदाई।