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प्रीत-23 / विनोद स्वामी

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तूं म्हनै
अर म्हैं तनै
आखै दिन पकड़ायो
सुबड़ रो नाको।
गोडै री दाब लगा’र
दियो बीं रो आंटो,
मारी गांठ।
बंधता गया भारिया
आपणै हेत रा।
अब जद-जद
खेतां में पड़्या दिखै अै भारा
हरेक रै
अेक कानी म्हैं
अर दूजै कानी तूं खड़ी दीखै।