कादम्बरी / पृष्ठ 1 / दामोदर झा
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1.
मुरली मुकुन्दकेर पदपर पहिने शिर नमबै छी
तदन्तर शारदा-गणेशक चरणकमल विनबै छी।
कादम्बरी कैथिलीमे हिनके भरोस बनबै छी
करिहथि विघ्न हंटाय पूर्ण ई हाथ जोड़ि मनबै छी।।
2
वेत्रवतीकेर तट पर सुन्दर ‘विदिशा’ नामक नगरी
जकर विभवसँ लज्जित सुरपुर-राज तकै छथि डगरी।
पुण्यवान तेजस्वी सबहिक एक स्वर्ग-सन आकर
इन्द्रधनुष सन रत्नजोतियुत जनमन-नयन-सुधाकर।।
3.
जतय तुच्छ जनहुक घरमे लखि-मणि-मोती केर पूरे
लाजे से कुबेर बसला कैलासशृंग पर दूरे।
सोना चानिक गोटीसँ कन्या सब खेलि करै छल
शाल दोशाला फाड़ि-फाड़ि कनिञ-पुतरा बनबै छल।।
4.
नवविवाहिता वधू जतय पतिकरसँ जँ छुटै छल
मणिमय दीप मिझयबालय व्यर्थे कपार पीटै छल।
मणि कुण्डलकेर प्रभा मानिनी गाल उपर पसरै छल
क्रोधे लालवदन लखितहुँ पतिमान तकर बिसरै छल।।
5.
रुचि1 छल जतए सतत मणिगणमे, नहि परतिय चम्बनमे
श्यामलता2 क्राड़ावनमे छल, नहि एकोजन मनमे।
छल कलंक शशिमण्डलमे, नहि श्रुतिगामी शुचि कुलमे
मधुपराजि3 नहि जनपदमे छल, केवल सुमन-मुकुलमे।।
1. कान्ति तथा इच्दा, 2. कारी लती तथा मालिन्य, 3. भ्रमर तथा मद्यपायी
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