भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फागुन की हवाओं में / नीरजा हेमेन्द्र
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:18, 23 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीरजा हेमेन्द्र |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पन्ना बनाया)
मेरे घर से निकलने वाली
सड़क अब
आम और महुए की गंध से
सराबोर होने लगी है
कोयल की कूक का अर्थ
अब मैं अच्छी तरह समझने लगी हूँ
नदी की लहरों में
श्वेत बगुले
अपनी परछाँइयों को देखते हुए
उड़ जातें हैं
फागुन की हवाओं में
रंगों के साथ तुम्हारी
स्मृतियाँ भी
घुलने लगी हैं।