भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नदी गोमती - शहर लखनऊ / कुमार रवींद्र

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:28, 23 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |अनुवादक= |संग्रह=र...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नदी गोमती
शहर लखनऊ
हम बाशिंदे उसी शहर के
 
बीच-शहर की तंग गली में
पुश्तैनी अपना मकान है
पहले ठाकुरद्वारा थी वह
बनी सामने जो दुकान है
 
याद हमें आते दिन
रह-रह
ठेठ गरमियों की दुपहर के
 
महफ़िल जमती थी घर में ही
दादी थीं शौक़ीन ताश की
उनसे ही थी सुनी कहानी
हनूमान के बराह्मपाश की
 
कई बार
उनकी गोदी में
दुबके थे राक्षस के डर से
 
आंगन में था पेड़ आम का
कटवा दिया भाई ने परसों
पता नहीं कितने ही पंछी
वहीं रहे थे बरसों-बरसों
 
कितने ही थे
मौसम दिल के
रातों की मीठी जगहर के