भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चतुर सयानों ने कल / कुमार रवींद्र
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:42, 23 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |अनुवादक= |संग्रह=र...' के साथ नया पन्ना बनाया)
चतुर सयानों ने कल मिलकर
सगुन बिचारा
सायत-घड़ी शोधकर उनने
सपने बीजे
व्यापीं बंजर घटनाएँ
दिन असमय छीजे
पुरखों का था कुआँ
हुआ उसका जल खारा
बाँधे उनने
किसिम-किसिम के नये सरोवर
किंतु मिला जल नहीं
मिले बस काँकर-पाथर
सबके सीने भरें
नेह की मिली न धारा
रचा छाँव का खेल
धूप लाने की धुन में
भेद नहीं रह गया कोई भी
गुन-अवगुन में
बिगड़ी सारी बात
उन्होंने लाख सँवारा