भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बंधु, लिखा जो / कुमार रवींद्र
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:35, 23 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |अनुवादक= |संग्रह=र...' के साथ नया पन्ना बनाया)
बंधु, लिखा जो
खत में हमने
उसे प्यार से पूरा पढ़ना
पहले पन्ने पर लिक्खा है
हालचाल हमने इस घर का
अगले पन्ने पर थोड़ा-सा
ज़िक्र किया है इधर-उधर का
उन खबरों का
मर्म बाँचना
तभी, बंधु, तुम आगे बढ़ना
आगे हैं कुछ कविताएँ
जिनमें हम सपनों से बतियाये
वहीँ हाल उन चेहरों का भी
जिन पर हैं पतझर के साये
सूरज के
अंधे होने का
दोष न उनके माथे मढ़ना
खत के अंतिम हिस्से में हैं
हमने जो आशीष उचारे
मिले हमें वे हैं पुरखों से
तीन लोक से वे हैं न्यारे
मसलन यह ही -
नेह-बसी
माटी से ही देवा को गढ़ना