भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पानी बरसा / नवीन सागर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:25, 25 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवीन सागर |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBaalKa...' के साथ नया पन्ना बनाया)
हवा तेज बह चली सरासर
धीरे बहना भूल के
उड़े बगुले धूल के।
जोर-जोर से लगे डोलने पेड़
हवा से बोलने
उड़ी धूप छायाएँ लेकर
दसों दिशाएँ खोलने
जो भी निकला बाहर उसको
लगे थपेड़े फूल के।
टन-टन-टन-टन घण्टी बाजी
गेट खुले स्कूल के।
खाली झूले रहे झूलते
बच्चे भग गए झूल के।