भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बंदौं राधा-पद-रज पावन / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:43, 3 दिसम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बंदौं राधा-पद-रज पावन।
स्याम-सुसेवित, परम पुन्यमय, त्रिबिध ताप बिनसावन॥
अनुपम परम, अपरिमित महिमा, सुर-मुनि-मन तरसावन।
सर्बाकर्षक रसिक कृष्नघन दुर्लभ सहज मिलावन॥