माधव! मो सम कौन अभागी॥
करौं न पलक याद मैं तुहरी, नाहिं भगति उर जागी।
हाय-हाय करतहि दिन बीतत, जरौं नित्य चिंतागी॥
भय-बिषाद सौं भर्यौ रहौं, नित भटकत इत-उत भागी।
मिलत न कतहुँ सांति-सुखमय थल, भोग-जगत जेहि लागी॥
नाथ! करहु अब सहज कृपा तुम, जागै तव बिरहागी।
बनौं तुम्हारे पद-कमलनि कौ लघु सेवक बड़भागी॥