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जुगलबर एक तव, दो रूप / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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जुगलबर एक तव, दो रूप।
पुतरी-नयन-तरंग-तोय-सम, भिन्न न भिन्न-स्वरूप॥
सुभ्र चंद्रिका-चंद्र, दाहिकासक्ति-‌अनल सम एक।
अति उदार बितरत स्वरूप-रस सहज, निभावत टेक॥