भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
देखी आजु अनोखी बात / हनुमानप्रसाद पोद्दार
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:58, 7 जनवरी 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)
देखी आजु अनोखी बात।
गई हुती लै खरिक दोहनी, सुमिरत मोहन-गात॥
मन की जाननिहारे आए मुरली मधुर बजात।
निरखि रहे ग्वालिनि-तन ठाढ़े, मधुर-मधुर मुसुकात॥
सुनि मुरली-धुनि तिरछे नयननि निरखत मुख-जलजात।
भई बावरी, बिसरी तन-सुधि, रह्यौ नहीं कछु ग्यात॥
गैया के बदले नोई ले बाँधी बरधा-लात।
प्रेम-सुधा-रस छकी ग्वालिनी ठाढ़ी पुलकित गात॥