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स्याम ने मुरली मधुर बजा‌ई / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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स्याम ने मुरली मधुर बजा‌ई।
सुनत टेर तनु-सुधि बिसारि सब गोप-बालिका धा‌ई॥
लहँगा ओढि, ओढऩा पहिरे, कंचुकि भूलि परा‌ई।
नकबेसर डारे स्रवनन महँ, अदभुत साज सजा‌ई॥
धेनु सकल तृन चरन बिसार्‌यौ, ठाढी स्रवन लगा‌ई।
बछुरन के थन रहे मुखन महँ, सो पय-पान भुला‌ई॥
पसु-पंछी जहँ-तहँ रहे ठाढ़े मानो चित्र लिखा‌ई।
पेड़-पहाड़ प्रेमबस डोले, जड़ चेतनता आ‌ई॥
कालिंदी-प्रबाह नहिं चाल्यौ, जलचर सुधि बिसरा‌ई।
ससि की गति अवरुद्ध, रहे नभ देव बिमानन छा‌ई॥
धन्य बाँस की बनी मुरलिया, बड़ौ पुन्य करि आ‌ई।
सुर-मुनि-दुरलभ रुचिर बदन नित राखत स्याम लगा‌ई॥