भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
झूलत ड्डूल हिंडोरे स्याम / हनुमानप्रसाद पोद्दार
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:48, 13 जनवरी 2014 का अवतरण ('{{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पन्ना बनाया)
झूलत ड्डूल हिंडोरे स्याम।
स्यामा-सहित, वदन सुचि सुस्मित, चहुँ दिसि ड्डूल ललाम॥
ड्डूल हिंडोरा, ड्डूल सुडोरी, आसन ड्डूल सुठाम।
ता पर सुमन-सुकोमल राजत दोऊ मन अभिराम॥
ड्डूल झूल रहे नील-पीतपट, ड्डूलन के सृङङ्गार।
करनड्डूल-कुंडल ड्डूलन के, ड्डूलन के गल-हार॥
दोउन के सब अंग सुसोभित विविध सुगंधित ड्डूल।
सखी-सहचरी झूला दै-दै रहीं मनहिं-मन ड्डूल॥