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प्यारे कान्ह सखा की मीठी / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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प्यारे कान्ह सखाकी मीठी स्मृतिमें सखा सभी लवलीन।
रहते सदा सोचते बात उसीकी, केवल मन अति दीन॥
डूबा अति आश्चर्य सोचता एक चिबुकपर अँगुलि टेक।
शोक-सिन्धु डूबा, विवेक तज, आँखें फाड़ देखता एक॥
आशा एक दिलाता, उड़ता, नभमें देख विहग-समुदाय।
कहता एक जियें कैसे हम हाय ! कृष्ण-विरहित असहाय॥
खड़ा लकुटिया टेक भूमिपर, एक अपार विषाद-विभोर।
दीन-हीन मुख मलिन सखा सब आज बिना मोहन मन-चोर॥