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दर्द / धूप के गुनगुने अहसास / उमा अर्पिता
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जीवन की
अँधेरी, निर्जन राहों में
जब तुम्हारा दर्द
लावारिस घूमता था,
तब-
मैंने बड़े अपनत्व के साथ
उसे अपना लिया था,
और-
अब यह मेरा है,
नितांत मेरा!