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अस्तित्व संकट / उमा अर्पिता
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बहुत मौसम बीत गये
खामोश हुए
तुम साथ दो, तो
मिलकर शोर मचायें!
आज--
परिस्थितियों की मजबूरी को जीते हुए
हम कितने मजबूर हुए,
पर अब
अंदर ही अंदर ‘कुछ’ घुमड़ रहा है,
एक विस्फोट हुआ चाहता है,
परंतु--
अणु-विस्फोट के धमाके में
यह विस्फोट बेमाना हो गया है,
खो गयी है इसकी आवाज
दुनिया के शोर में।
अब मैं
अपने होने का
प्रमाण आखिर किसे दूं?