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मछली और पानी / उमा अर्पिता
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भीतर तक
पूरी तरह
टूटने के बाद भी
मैं--
तुमसे नफ़रत नहीं कर पाऊँगी,
बिल्कुल उस मछली की तरह,
जिसे
पानी की ही कोई लहर
तट पर ला पटकती है
और वह
उसी पानी के लिए
तड़प-तड़प कर
दम तोड़ देती है,
मगर
किनारे की
रेत से
समझौता नहीं करती
कर ही नहीं पाती...