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आय दूती ने बात कही / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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आय दूती ने बात कही॥
चंद्रावलि की कुंज सिधारे साँवर आजु सही।
सुनत प्रड्डुल्लित भई राधिका धीरज सहज गही॥
उठी अमित आनंद-लहर उर मानस-सिद्धि लही।
चंद्रावलि सम नहीं कितहुँ कोउ सुंदरि अन्य मही॥
मधुर सुहासिनि चतुर विलासिनि, गुन-समूह उमही।
मैं नित ही कहती पिय तैं, ’तुम क्यौं न जाउ उतही’॥
सुनी नायँ पिय बिनय कबहुँ उलटे मो कूँ उलही।
दूती! भयो विधाता दच्छिन मन की होय रही॥