Last modified on 24 फ़रवरी 2014, at 16:53

केही केरे सिर सोहे सोने क छतुरिया / अवधी

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:53, 24 फ़रवरी 2014 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

   ♦   रचनाकार: सिद्धार्थ सिंह

केही केरे सिर सोहे सोने क छतुरिया, केहिया सिर ना
रामा ढुरेला पसीनवा केहिया सिर ना

राम जी के सिर सोहै सोने क छतुरिया, लखन सिर ना
रामा ढुरेला पसीनवा लखन सिर ना

सीता आवो मोरे देवरा अंगन मोरे बैठो, के मैं पोंछी देउ ना
तोहरे सिर का पसीनवा मै पोंछि देउ ना

लक्ष्मण सिर का पसीनवा तु जनि पोंछौ भौजी, के धूमिल होइहैं ना
तोहरी चटकी चुनरिया धूमिल होइहैं ना

सीता चुनरी त हमरी धोबीया घरे जैहैं, के लखन ऐस ना
कहाँ देवरा मैं पैहों के लखन ऐस ना