भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
स्याम-स्यामा दोउ करत बिहार / हनुमानप्रसाद पोद्दार
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:46, 2 मार्च 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)
स्याम-स्यामा दोउ करत बिहार।
नव निकुंज सौरभित सुमनकी छाई छटा अपार॥
खेलत हँसत लसत अति प्रमुदित बहत सुधा रस धार।
बढ़त अमित अनुराग परस्पर लोचन ललित निहार॥
सुचि रसपान-प्रमा परस्पर सुख सागर लहरात।
उठत तरंग बिबिध बिधि अनुपम अँग न समात॥
रस-सागर रस-सरिता दोऊ, मिलि, करि प्रेम विकास।
अंग-अंग राजत सुषमा श्री माधुरि अमित विकास॥
रहत निहारत पल-पल दोऊ निरखि न नैन अघात।
उदित प्रेम प्रमुदित मन अतिसय पुलकित मधुमय गात॥