Last modified on 2 मार्च 2014, at 17:24

मधुर-मधुर, सुन्दर-सुन्दर / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:24, 2 मार्च 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मधुर-मधुर, सुन्दर-सुन्दर प्रियतम के-मोह-नाश के काज।
करन लगी राधा आराधन नारायन कौ सब बिधि साज॥
ब्रत-‌उपवास-नेम तन-धारै, एकहि रही लालसा जाग।
त्याग करें मोहन, जो करते मोहबिबस मोमें अनुराग॥
अतुलनीय सुख लाभ करें वे, पाय जोग्य संगिनि कौ संग।
तब मैं परम सुखी होऊँगी, नाच उठैंगे सगरे अंग॥
एक लगन सौं चली साधना प्रियतम-सुख-बांछा मन लीन।
परमत्यागमय स्व-सुख-कल्पना-लेश-गन्ध-सबन्ध-विहीन॥