Last modified on 8 मार्च 2014, at 12:50

करूँ मैं कहाँ तक मुदारात रोज़ / रंगीन

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:50, 8 मार्च 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सआदत यार ख़ाँ रंगीन |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

करूँ मैं कहाँ तक मुदारात रोज़
तुम्हें चाहिए है वही बात रोज़

मुझे घर के लोगों का डर है कमाल
करूँ किस तरह से मुलाक़ात रोज़

मिरा तेरा चर्चा है सब शहर में
भला आऊँ क्यूँकर मैं हर रात रोज़

कहाँ तक सुनूँ कान तो उड़ गए
तिरी सुनते सुनते हिकायात रोज़

गए हैं मिरे घर में सब तुझ को ताड़
किया कर न रंगीं इशारात रोज़