भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक क्षण के लिए / भवानीप्रसाद मिश्र
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:11, 1 अप्रैल 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भवानीप्रसाद मिश्र |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पन्ना बनाया)
एक क्षण के लिए जब
अपने को आप जैसा पाया मैंने
आसमान तब
सिर पर उठाया मैंने
और दे मारा मैंने उसे
ज़मीन पर
हंसी आ गयी तब मुझे
उस क्षण यह सोचकर
कि कितना इसका शोर था
इसी में रात थी
इसी में भोर था
और अब यह
यों छार छार पड़ा है
आपके जैसा होने का मज़ा
ख़ासा बड़ा है
मगर एक क्षण के लिए
सदा तत्पर नहीं रह सकता मैं
इतने निरर्थक रण के लिए
जिसमें आसमान
सिर पर उठाना पड़ता हो
पटकना पड़ता हो जिसमें
सूरज को ज़मीन पर!