भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उस दिन / भवानीप्रसाद मिश्र

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:38, 1 अप्रैल 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भवानीप्रसाद मिश्र |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उस दिन
आँखें मिलते ही
आसमान नीला हो गया था
और धरती फूलवती

चार आँखों का वह जादू
तुम्हें यहाँ से कैसे भेजूं?
आओ तो दिखाऊं
वह जादू

जादू जैसे
जँबूरे के बिना नहीं चलता
वैसे बिना तुम्हारे
अकेला मैं
न आसमान
नीला कर पाता हूँ
न धरती फूलवती!