भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

संग्रह के खिलाफ / भवानीप्रसाद मिश्र

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:51, 1 अप्रैल 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भवानीप्रसाद मिश्र |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हवा तेज़ बह रही है
और संग्रह जो मैं
मुर्त्तिब करना चाह रहा हूँ
उड़ा रही है उसके पन्ने

एक बूडा आदमी
चल रहा है सड़क पर
बदल दिया है उसका रंग
बत्ती के मटमैले उजाले ने

और कुत्ते उस पर भोंक रहे हैं
छाया लैम्पोस्ट की
साधिकार
आ कर पड़ी है
संग्रह के खुले पन्ने पर

हवा और कुत्ते और बूढ़ा आदमी
बत्ती और लैम्पोस्ट
सब
मानो मेरे संग्रह के खिलाफ हैं

जी नहीं होता
इस सब के बीच
लिखते रहने का

कुत्तों को भागों जाऊं
बूढ़े आदमी को
भीतर बुलाऊँ!