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प्रेम रस सागर नागरि राधा / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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प्रेम-रस-सागर नागरि राधा।
चरन चारु नख-चंद्र-चंद्रिका हरत सकल तम-बाधा॥
सुमिरत तुरत जरत बहु जनमनि के अगनित अपराधा।
मिलत प्रेम-पीयूष सुदुरलभ, सफल सकल सुचि साधा॥