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निज सुख काम गन्ध का जिनमें किंचित् / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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निज-सुख-काम-गन्ध का जिनमें किंचित् भी न कल्पना-लेश।
प्रेम-दिनेश प्रकट रहता नित, मिटा काम-तम, रहा न शेष॥
जिनके कर्म, विचार-सभीसे सदा एक प्रियतम-सुख-भाव।
सुखमय प्रिय-मुख दर्शन का नित नया-नया उठता मन चाव॥
ऐसी कृष्ण-सुखैकस्वरूपा, कृष्ण-मानसा प्रेमागार।
चरण-कमलमें मुझे स्थान दें, करें कृपा-रस-वृष्टि अपार॥