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बढ़ रही हैं चोंचलों की आजकल / देवी नांगरानी
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बढ़ रही हैं चोंचलों की आजकल गुस्ताख़ियाँ
लोरियाँ गाती हैं ख़ाली पालनों को दादियाँ
दिन दहाड़े छीन लेता है समय आसानियाँ
कर रही हैं हुक्मरानी आजकल दुश्वारियाँ
रक्स करती हैं अंधेरों में बसी बरबादियाँ
रोशनी में भी दिखाई देती हैं तारीकियाँ
क्या हुआ क्यों डर रहे हैं आजकल के ये बुज़ुर्ग
इनकी आँखों की हुईं गुल क्या सभी ताबानियाँ
उनकी चीखें गूँजती हैं वादियों में इस तरह
अनकही-सी दास्तानें कह रही हों वादियाँ
सोच पर ताले लगे हैं, होठ भी सिल-से गए
यूँ ज़बां की छीन लीं ‘देवी’ सभी आज़ादियाँ