भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
निंदिया सतावे / शमशेर बहादुर सिंह
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:20, 12 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGeet}} <poem> निंदि...' के साथ नया पन्ना बनाया)
निंदिया सतावे मोहे सँझही से सजनी।
सँझही से सजनी ॥1॥
प्रेम-बतकही
तनक हू न भावे
सँझही से सजनी ॥2॥
निंदिया सतावे मोहे...।
छलिया रैन
कजर ढरकावे
सँझही से सजनी ॥3॥
निंदिया सतावे मोहें...।
दुअि नैना मोहे
झुलना झुलावें
सँझही से सजनी ॥4॥
निंदिया सतावे मोहें...।