भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यह देखि धतूरे के पात चबात / रसखान
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:37, 16 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रसखान |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatPad}} <poem> य...' के साथ नया पन्ना बनाया)
यह देखि धतूरे के पात चबात औ गात सों धूलि लगावत है।
चहुँ ओर जटा अंटकै लटके फनि सों कफनी पहरावत हैं।
रसखानि गेई चितवैं चित दे तिनके दुखदुंद भाजावत हैं।
गजखाल कपाल की माल विसाल सोगाल बजावत आवत है।