भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रिय तेरी चितवन ही में टोना / रसिक दास
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:02, 20 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रसिक दास |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatPad}} <po...' के साथ नया पन्ना बनाया)
प्रिय तेरी चितवन ही में टोना।
तन मन धन बिसर्यो जब ही तें, देख्यो स्याम सलोना॥१॥
ढिंग रहबे कु होत विकल मन, भावत नाहि न मोना॥
लोग चवाव करत घर घर प्रति, घर रहिये जिय मोना॥२॥
छूट गई लोक लाज सुत पति की, और कहा अब होना॥
रसिक प्रीतम की वाणिक निरखत, भूल गई गृह गोना॥३॥