भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गोपालहिं माखन खान दै / सूरदास

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:18, 21 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूरदास |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatPad}} <poem> ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गोपालहिं माखन खान दै।
सुनु री सखी को जिनि बोले बदन दही लपटान दै॥
गहि बहिया हौं लै कै जैहों नयननि तपनि बुझान दै।
वा पे जाय चौगुनो लैहौं मोहिं जसुमति लौं जान दै॥
तुम जानति हरि कछू न जानत सुनत ध्यान सों कान दै।
सूरदास प्रभु तुम्हरे मिलन कों राखौं तन मन प्रान दै॥