भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सोई साध-सिरोमनि / दादू दयाल

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:09, 21 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दादू दयाल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBhajan...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सोई साध-सिरोमनि, गोबिंद गुण गावै।
राम भजै बिषिया तजै, आपा न जनावै॥टेक॥

मिथ्या मुख बोलै नहीं पर-निंद्या नाहीं।
औगुण छोड़ै गुण गहै, मन हरिपद-माहीं॥१॥

नरबैरी सब आतमा, पर आतम जानै।
सुखदाई समता गहै, आपा नहिं आनै॥२॥

आपा पर अंतर नहीं, निरमल निज सारा।
सतबादी साचा कहै, लै लीन बिचारा॥३॥

निरभै भज न्यारा रहै, काहू लिपत न होई।
दादू सब संसारमें, ऐसा जन कोई॥४॥